किसान की कसक

बौद्धिक संपदा के अंतर्राष्ट्रीय कानून का डर दिखाकर बहुराष्टीय कंपनी पेप्सिको ने गुजरात के आलू किसानों पर भारी-भरकम दावा ठोककर अदालत के चक्कर काटने पर मजबूर कर दिया है। किसानों में इससे बेचैनी है। तकरीबन 193 किसान नेताओं, नागरिक प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं के एक समूह ने केंद्र व राज्य सरकार से किसानों के समर्थन में हस्तक्षेप करने और दावों को तुरंत वापस करवाने की मांग की है। हालांकि, गुजरात सरकार ने कहा है कि वह किसानों के साथ खड़ी है और कंपनी से कहेगी कि वह इन मुकदमों को वापस ले और इसकी पुनरावृत्ति न करे। दरअसल, कंपनी की तरफ से दावा किया गया है कि उसके लोकप्रिय चिप्स लेज के उत्पादन के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले एफसी-5 किस्म के आलू से जुड़े ?कॉपीराइट कानूनों का किसानों ने उल्लंघन किया है। अहमदाबाद की एक वाणिज्यिक अदालत में चार आलू उत्पादकों के खिलाफ एक-एक करोड़ के दावे ठोके गये हैं। ये आलू उत्पादक गुजरात के साबरकांठा के वडाली गांव के हैं। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख चार जून तय की है और विवादित किस्म के आलू के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाई है। अदालत ने फील्ड विजिट के लिये एक कमिश्नर भी नियुक्त किया है। कंपनी ने किसानों के सामने अदालत से बाहर समझौता करने का प्रस्ताव भी रखा था, जिसमें कंपनी की |शर्तों के अनुपालन के साथ ही एफसी-5 किस्म के आलू के लिये किसान कंपनी से ही बीज खरीदेंगे और केवल कंपनी को ही बेचेंगे, न कि खुले बाजार में। जिस पर किसान सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। निसंदेह ये स्थितियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मनमानी और कॉरपोरेट खेती के खतरों के प्रति आगाह करती हैं। दरअसल, एफएल 2027 किस्म का आलू अमेरिका में 2003 में विकसित किया गया था, जिसे भारत में एफसी-5 के नाम से जाना जाता है। इस आलू को चिप्स की प्रोसेसिंग के अनुकूल विकसित किया गया है। जिसके लिये पेप्सिको कंपनी किसानों के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करती है। कंपनी खास व्यास के आलू ही खरीदती है। इसके पेटेंट की अवधि के बाद ही किसान बिना इजाजत व रॉयल्टी के इसके बीज को इस्तेमाल कर सकेंगे। किसानों का आरोप है कि कंपनी आलू उत्पादन में एकछत्र राज स्थापित करने के लिये किसानों पर दबाव बनाने का काम कर रही है। इससे पहले भी वर्ष 2018 में गुजरात के अरवल्ली जिले के पांच किसानों के विरुद्ध भी बीस-बीस लाख के ऐसे मामले दर्ज किये गये थे। दरअसल, भोले-भाले किसानों को जब बीज दिये जाते हैं तो कंपनी की सभी शर्तों से अवगत नहीं कराया जाता। बीज भी उन तक सीधे कंपनी के बजाय बिचौलियों के माध्यम से पहुंचते हैं और उन्हें कंपनी के करार की खामियां नहीं बतायी जातींएक तरह से किसान और उनकी जमीन कंपनी की बंधक बनकर रह जाती है। वे बताते हैं कि कंपनी के प्रतिनिधिबिना उनकी अनुमति के उनके खेतों का मुआयना करते हैं।किसान कहते हैं कि वे तो विभिन्न किसानों के बीच सूचना । के आदान-प्रदान के चलते गुणवत्ता वाले बीजों के उपयोग की सदियों पुरानी परंपरा का ही अनुपालन करते हैं। उन्हें कंपनी के ब्रांड व अधिकारों की जानकारी भी नहीं थी।कहीं न कहीं किसानों को बिचौलिया क द्वारा अधरमरखा गया। दरअसल, पेप्सिको ने इस बीज का भारत में पंजीकरण वर्ष 2016 में कराया था ।